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सांस्कृतिक विरासत हमारी संसद


 

भारत के संविधान का स्वरूप गणतंत्रीय तथा ढांचा संघीय है और उसमें संसदीय प्रणाली के प्रमुख तत्व विद्यमान हैं । इसमें संघ के लिये एक संसद का प्रावधान है जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन अर्थात् राज्य सभा ( काउंसिल ऑफ स्टेट्स ) और लोक सभा ( हाउस ऑफ दी पीपल ) सम्मिलित हैं ; इसमें संघ की कार्यपालिका का भी प्रावधान है जो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों में से सदस्य लेकर बनती है और वह सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है , इस प्रकार संघ की कार्यपालिका और संसद के बीच घनिष्ठ संबंध सुनिश्चित हो जाता है ; इसमें यह भी प्रावधान है कि एक राज्याध्यक्ष होगा जिसे भारत का राष्ट्रपति कहा जाएगा और वह केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह से काम करेगा ; भारतीय संविधान में अनेक राज्यों का प्रावधान है जिनकी कार्यपालिकाओं और राज्य विधानमंडलों के बारे में वैसे ही मूल उपबन्ध हैं जैसे कि संघ के बारे में हैं ; संविधान में विधि सम्मत शासन की व्यवस्था है तथा इसमें एक स्वतंत्र न्यायपालिका की और एक स्थायी सिविल सेवा की व्यवस्था है । भारत की संसद प्रभुसत्ता सम्पन्न निकाय नहीं है , यह एक लिखित संविधान की सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करती है । इसके विधायी प्राधिकार पर दो प्रकार की सीमाएं हैं , एक तो यह कि संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया है और दूसरी यह कि संविधान में न्याय्य मौलिक अधिकारों का समावेश है तथा न्यायिक पुनरीक्षण का प्रावधान है जिसका अर्थ यह है कि संसद द्वारा पारित सभी विधियां अनिवार्यतः संविधान के उपबन्धों के अनुसार होनी चाहिए और उनकी संवैधानिकता की जांच एक स्वतंत्र न्यायपालिका द्वारा की जा सकती है । इन सब उपबंधों से संसद के प्राधिकार तथा अधिकार क्षेत्र के स्वरूप तथा विस्तार का पता चलता है । 

कुछ महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य  
• भारत की सबसे बड़ी कानून बनाने वाली सभा संसद है, जिसमें राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्य सभा सम्मिलित हैं। 
• एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर नामक वास्तुकारों ने संसद भवन की रूपरेखा तैयार की थी। संसद भवन के निर्माण हेतु शिलान्यास 12 फरवरी, 1921 को किया गया था। इसका निर्माण कार्य छह वर्ष बाद 18 जनवरी 1927 को पूरा हुआ था। 
• संसद भवन का उद्घाटन तत्कालीन भारतीय वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था। संसद परिसर का क्षेत्रफल लगभग 6 एकड़ है। संसद में प्रवेश के लिए 12 दरवाजे हैं। केन्द्रीय कक्ष संसद भवन के बीच में है। केन्द्रीय कक्ष में ही 15 अगस्त, 1947 को भारतीयों को ब्रिटिश शासन का हस्तांतरण किया गया था।
 • संसद में लोकसभा कक्ष का क्षेत्रफल 446 वर्ग मीटर है। लोकसभा में सीटों की व्यवस्था ‘हॉर्स शेड’ के रूप में की गई है। लोकसभा के सदस्यों के लिए लगभग 550 सीटें हैं। लोकसभा के फर्श पर हरे रंग का कालीन बिछा हुआ है। सत्तारूढ़ दल के सदस्य दाहिनी ओर बैठते हैं, जबकि विपक्षी दलों के सदस्य लोकसभा के बाईं ओर बैठते हैं। 
• राज्यसभा के फर्श पर लाल रंग का कालीन बिछा हुआ है। राज्यसभा में सदस्यों के लिए लगभग 250 सीटें हैं। राज्यसभा में सीटें अर्द्ध वृत्ताकार ढंग से व्यवस्थित की गई हैं । 
• लोक सभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। लोकसभा के प्रत्येक सदस्य की अवधि पांच वर्ष होती है। लोक सभा अध्यक्ष लोकसभा का पीठासीन अधिकारी होता है। 
• राष्ट्रपति लोकसभा और राज्यसभा दोनों की संयुक्त बैठक बुला सकते हैं । 
• जी. वी. मावलंकर संसद के प्रथम लोकसभा अध्यक्ष थे । 
• लोकसभा 17 अप्रैल, 1952 को अस्तित्व में आई। इसकी प्रथम बैठक 13 मई, 1952 को आयोजित की गई थी। राज्यसभा संसद की स्थायी सभा है, और इसे भंग नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक राज्यसभा का कार्यकाल छह वर्ष है। " राज्यसभा के कुल सदस्य 250 होते हैं। इन 250 सदस्यों में से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। 3 अप्रैल, 1952 में को राज्यसभा अस्तित्व में आई थी।

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