कार्यालय प्रधान न्यायाधीश, कुटुम्ब न्यायालय बिलासपुर,(छ०ग०) द्वारा सिविल एवं न्यायिक प्रकरणों के लिए जारी विधिमान्य प्रक्रिया
1. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 से लेकर 128 तक के समस्त प्रकरणों में आवेदिका को अपना तथा अनावेदक का मोबाइल नंबर, व्हाट्सअप नंबर, बैंक खाता विवरण, पंजीकृत पता पिन कोड सहित लिखना अनिवार्य होगा।
2. आवेदक अपना /अनावेदक का ऐसा सभी विवरण और दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे, जो भरण-पोषण के आवेदन के निराकरण के लिए अनिवार्य एवं आवश्यक हो। यदि दस्तावेज मूल नहीं है, तो दो रूपये का कोर्ट फीस प्रति पृष्ट की दर से देंगे।
3. आवेदक अपने आवेदन के समर्थन में जो भी दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे उसे स्वप्रमाणित करके देना होगा।
4. आवेदिका के लिए यह अनिवार्य है कि वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय रजनेश विरूद्ध नेहा वगैरह आपराधिक अपील कमांक 07.30.2020 निर्णय दिनांक 04.11.2020 में दिए गए निर्देश के अनुसार अपनी संपत्ति और दायित्व की घोषणा करते हुए शपथ पत्र विहित प्रारूप में प्रस्तुत करेंगे जिसके साथ सुसंगत दस्तावेज भी पेश करना अनिवार्य होगा।
5. आवेदिका के द्वारा भरण पोषण हेतु आवेदन प्रस्तुत करने के लिए उसे स्वयं न्यायालय में उपस्थित होना होगा और अपनी पहचान के लिए आधारकार्ड या अन्य सुसंगत दस्तावेज प्रस्तुत करना होगा और उसका प्रारंभिक परीक्षण सुलहकर्ता या न्यायमित्र के द्वारा किया जा सकेगा।
6. आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत आवेदन की प्रारंभिक जाँच, सुलह समझाइश के पश्चात् प्रकरण पंजीयन हेतु विचार किया जाएगा तथा अनावेदक को उसके मोबाइल नंबर, व्हाट्सअप नंबर, ई-मेल से सूचना भेजकर न्यायालय में आहूत किया जा सकेगा।
7. यदि अनावेदक कंडिका कमांक 6 के अनुसार की गई सूचना के उपरांत उपस्थित नहीं होता है तो दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 62 के अनुसार व्यक्तिगत तामीली कराई जाएगी और यदि अनावदेकन्यायालय के स्थानीय सीमाओं के बाहर निवास करता है तो धारा 67 एवं 69 के अंतर्गत तामीली कराई जा सकेगी।
8. अनावेदक के न्यायालय में उपस्थित होने के पश्चात् उसे न्यायमित्र / सुलहकर्ता के समक्ष उपस्थित होना होगा।
9. सुलह समझाइश की कार्यवाही असफल होने पर अनावेदक को आवेदक के आवेदन, पूर्ण दस्तावेजों की प्रतिलिपि प्रदान की जाएगी और प्रकरण प्रक्रिया अनुसार अग्रिम कार्यवाही हेतु रखी जाएगी।
10. जवाब प्रस्तुत होने के पश्चात् आवेदक के दस्तावेजों में तिथि अनुसार कम से प्रदर्श पी- एवं अनावेदक के दस्तावेजों में प्रदर्श डी- चिन्हित की जाएगी, और दस्तावेजों में प्रदर्श चिन्हित करने के पश्चात् उभयपक्ष अपना साक्ष्य न्यायालय में बोलकर शपथपूर्वक दे सकते हैं। कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984 की धारा 16 के अंतर्गत औपचारिक प्रकृति के साक्ष्य को शपथपत्र पर प्रस्तुत कर सकते हैं,
जिसमें प्रदर्श के रूप में चिन्हित दस्तावेजों को घटनाक्रम या तथ्यों के साथ कम से रखते हुए साक्ष्य लिपिबद्ध करायी जाएगी, जिसमें प्रश्न
उत्तर के रूप में साक्ष्य लिया जा सकता है।
11. उभयपक्ष को प्रकरण में न्यायभित्र उपलब्ध कराया जा सकेगा और न्यायमित्र उभयपक्ष के मध्य वास्तविक विवाद को समझकर उसका सुलह समझाइश से निराकरण किये जाने के लिए न्यायालय की सहायता करेंगे।
12. आवेदक या अनावेदक अनुपस्थित रहते हैं तो वे न्यायमित्र को सूचित करेंगे और न्यायमित्र उनकी ओर से न्यायालय में सूचनाकर्ता का कार्य कर सकते हैं।
13. आवेदिका एवं अनावेदक यदि अपना मोबाइल नंबर, व्हाट्सअप नंबर, या ई-मेल या खाता नंबर बदलते हैं तो इसकी सूचना न्यायालय को देंगे।
14. भरण-पोषण के लिए आदेश होने के उपरांत न्यायालय के द्वारा तत्काल वसूली कार्यवाही प्रारंभ की जा सकेगी तथा पुनरीक्षण प्रस्तुति हेतु निर्धारित मर्यादा अवधि 30 दिन के पश्चात की तिश्चि नियत की जा सकेगी, जिसमें अनावेदक को पृचक से कोई सूचना नहीं भेजी जाएगी यदि अनावेदक भरण-पोषण राशि के भुगतान में जानबूझकर उपेक्षा या चूक करता है तो उसे प्रत्येक माह के चूक के लिए 30 दिन तक का कारागार एक वारंट से भेजा जा सकेगा।
15. अंतरिम भरण-पोषण के आदेश का पालन संबंधित प्रकरण में ही कराया जाएगा इसके लिए पृथक से वसूली हेतु प्रकरण प्रारंभ नहीं किया जाएगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा न्यायदृष्टांत रजनेश विरूद्ध नेहा वगैरह में दिये निर्देश की कडिका क्रमांक 95 के अनुसार भरण-पोषण की राशि के भुगतान में जानबूझकर की गई चूक या लगातार विना कारण के की गई चूक के कारण अनावेदक का बचाव समाप्त किया जा सकेगा।
16. दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 431, 421 के अंतर्गत दिये गये प्रक्रिया अनुसार भरण-पोषण की राशि की वसूली की जा सकेगी यदि अनावेदक की भू-राजस्व देने वाली भूमि है तो (छ.ग. भू राजस्व संहिता 1959 के सुसंगत प्रावधानों के अतर्गत रहते हुए) उसकी कुर्की और विक्रय के लिए संबंधित जिले के कलेक्टर/अनुविभागीय अधिकारी/तहसीलदार/नायब तहसीलदार को भू-राजस्व की वसूली की तरह वसूली करने हेतु लिखा जा सकता है या धारा 147 भू-राजस्व संहिता 1959 के अंतर्गत वसूली कार्यवाही करायी जा सकेगी।
सही/-
(रमाशंकर प्रसाद)
प्रधान न्यायाधीश
कुटुम्ब न्यायालय, बिलासपुर (छ०ग०)
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