विभागीय जाँच प्रक्रिया
(Procedure of Department Inquiry)
1. विभागीय जाँच का प्रारम्भ-
विभागीय जाँच हेतु जब कोई प्रकरण अनुशासनिक अधिकारी द्वारा तैयार किया जाता है। तब आरम्भिक स्थिति में तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित होता है. जो इस प्रकार है-
(1) आरोप पत्र तैयार किया जाना- विभागीय जाँच के प्रारंभ करने की जो प्रथम महत्वपूर्ण कार्यवाही है, वह अनुशासनिक अधिकारी द्वारा, जिस कदाचरण हेतु विभागीय जाँच का निर्णय लिया गया है. आरोप-पदों का तैयार किया जाना है। आरोप पत्र तैयार करना 'सी.जी.सी.एस.सी. सी.ए. नियम के अधीन एक आज्ञापक (Mandatory) कार्यवाही है। इस प्रकार सी.जी.सी.एस.सी.सी.ए. नियम के नियम 14 (3) में अपचारी अधिकारी को एक आरोप पत्र जारी करने का प्रावधान किया गया है, जिसमें मुख्यतया निम्न ब्यौरे होंगे-
(ⅰ) लगाए गए आरोप या आरोपों का विवरण(Discription of Charges),
(in) आरोपों पर अभिकथन (Statement of Allegations),
(ii) अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची (List of documentary evidence),
(iv) साक्षियों की सूची (List of witnesses)।
(2) अपचारी अधिकारी को आरोप पत्र जारी किया जाना - सी.जी.सी.एस. सी.सी.ए नियम के नियम 14(4) में उपरोक्तानुसार तैयार आरोप पत्र अपचारी अधिकारी को प्रेषित कर, एक निर्धारित अवधि, जो कि कम से कम सात दिवस होगा, में अपचारी अधिकारी को बचाव उत्तर प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया जावेगा। अगर अपचारी अधिकारी व्यक्तिगत सुनवाई चाहता है तब अनुशासनिक अधिकारी उसे व्यक्तिगत रुप से सुन भी सकेगा।
टिप्पणी- (1) आरोप पत्र से संबंधित विस्तृत विवरण अध्याय 11 में दिया गया है जिसका अवलोकन करना उचित होगा।
टिप्पणी- (2) जब अपचारी अधिकारी, जिस पर आरोप लगा है, यह सूचित करे कि वह मौखिक सुनवाई चाहता है तब अनुशासनिक अधिकारी को ऐसी जाँच करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं होगा। उसे किसी आधार पर ऐसी सुनवाई करने से इन्कार नहीं करना चाहिए।
[सामान्य पुस्तक परिपत्र भाग एक क्रमांक 13 पैरा 11 वर्गीकरण नियम]
(3) अपचारी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत बचाव उत्तर पर की जाने वाली कार्यवाही-
(i) सी.जी.सी.एस.सी.सी.ए. नियम 1966 के नियम 14(4) के अधीन जारी आरोप पत्र पर अपचारी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत बचाव उत्तर पर अनुशासनिक अधिकारी द्वारा की जाने बाली कार्यवाही का प्रावधान, नियम 14 (4) (क) में किया गया है। इन नियमों के अधीन, अनुशासनिक प्राधिकारी प्रस्तुत बचाव उत्तर का परीक्षण करेगा। अगर अपचारी अधिकारी द्वारा आरोपों को अस्वीकार किया गया है, तब अनुशासनिक अधिकारी द्वारा आरोप पदो की जाँच हेतु, नियम 14(2) में जाँचकर्ता अधिकारी नियुक्त कर सकेगा एवं जाँच में स्वयं के प्रतिनिधित्व हेतु नियम 4 (5) (ग) में प्रस्तुतकर्ता अधिकारी नियुक्ति करेगा।
टिप्पणी- जाँच अधिकारी एवं प्रस्तुतकर्ता अधिकारी नियुक्ति का विस्तृत विवरण अध्याय 12 में दिया गया है अवलोकन करना उचित होगा।
(ii) जब अपचारी अधिकारी द्वारा समस्त आरोप पदो को स्वीकार कर लिया गया हो तब उसके अभिकथन परीक्षण कर, जैसा वह उचित समझे, अनुशासनिक अधिकारी अपना निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।
टिप्पणी-जाँच अधिकारी, प्रस्तुतकर्ता अधिकारी के रुप में भी कार्य नहीं कर सकता। [के.सी. भार्गव बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2012(4) एम.पी.एल.जे. 244 (म.प्र.)]
इस प्रकार आरोप-पत्र का तैयार करना एवं उसे अपचारी अधिकारी को सौपकर उसका बचाव उत्तर प्राप्त करना, बचाव उत्तर के आधार पर विभागीय जाँच प्रक्रिया को स्थापित करते हुए जाँच अधिकारी एवं प्रस्तुतकर्ता अधिकारी की नियुक्ति किया जाना, विभागीय जाँच के आरम्भिक घटनाएँ है।
2. विभागीय जाँच प्रक्रिया के विभिन्न स्तर -
वास्तव में विभागीय जाँच प्रक्रिया, अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा जाँच अधिकारी नियुक्त करते हुए उसे आरोप पत्र सहित समस्त सुसंगत अभिलेख को उपलब्ध करा देने से ही प्रारम्भ होती है। [नियम 14(6)] इस प्रकार विभागीय जाँच की सम्पूर्ण प्रक्रिया में निम्नानुसार अन्तरनिहित विभिन्न स्तर (Stages) होते हैं-
(1) सुनवाई पूर्व का स्तर,
(2) प्रारम्भिक सुनवाई का स्तर,
(3) नियमित सुनवाई का स्तर,
(4) सुनवाई के बाद का स्तर।
टिप्पणी-
(1) विभागीय जाँच प्रक्रिया के विभिन्न स्तर का विस्तृत विवरण अध्याय 13 मे भी उल्लेखित है।
(2) सुनवाई पूर्व में विभागीय जाँच अधिकारी द्वारा निर्वहन किए जाने वाले कार्यों का विस्तृत विवरण अध्याय 13 में दिया गया है। अतः, इस अध्याय में प्रमुखतः स्टेज (2) एवं स्टेज (3) पर विस्तार से उल्लेख किया जावेगा।
3. जाँच प्रारम्भ करने की समय सीमा -
सी.जी.सी.एस.सी.सी.ए. नियम 1966 के नियम 14 (6) के प्रावधानों के अधीन जाँच अधिकारी को अनुशासनिक प्राधिकारी से नियुक्ति पत्र, आरोप पत्र एवं अन्य सुसंगत अभिलेख प्राप्त होने के दस दिवस के अन्दर, अपचारी अधिकारी को प्रारम्भिक सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए जाँच प्रक्रिया प्रारम्भ की जावेगी।
4. प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान की जाने वाली कार्यवाही -
प्रारम्भिक सुनवाई की प्रक्रिया के अधीन निम्न कार्यवाही की जावेगी-
(1) प्रारम्भिक सुनवाई हेतु तिथि निर्धारण - जाँच अधिकारी नियम 14(7) के अधीन अनुशासनिक अधिकारी से संबंधित समस्त सुसंगत अभिलेख प्राप्त होने के दस दिन के अन्दर प्रारम्भिक सुनवाई हेतु तिथि निर्धारित करेगा।
(2) बचाव सहायक की नियुक्ति-निर्धारित तिथि पर प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान अपचारी अधिकारी, अगर किसी बचाव सहायक की सेवा लेना चाहता हो, तब वह लिखित में इस विषय में जाँच अधिकारी से आग्रह करेगा। जाँच अधिकारी, अगर समुचित समझे, तब नियम 14(8) के अधीन बचाव सहायक नियुक्ति करने की अनुमति दे सकेगा।
टिप्पणी-बचाव सहायक के नियुक्ति के विषय में विस्तृत विवरण अध्याय 15 में दिया गया है अवलोकन किया जाना उचित होगा।
(3) अपचारी अधिकारी की व्यक्तिगत सुनवाई (i) नियम 14 (9) के प्रावधानों के अधीन व्यक्तिगत सुनवाई के दौरान, प्रस्तुत कर्त्ता अधिकारी की उपस्थिति में, जाँच अधिकारी समस्त आरोप पदों को पढ़कर अपचारी अधिकारी को सुनाएगा एवं यह प्रश्न करेगा कि क्या यह आरोप उसे मान्य है या अमान्य ? अमान्य होने की स्थिति में, प्रकरण नियमित सुनवाई हेतु निर्दिष्ट होगा।
(ii) अगर प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान अपचारी अधिकारी कतिपय आरोपों को स्वीकार कर लेता है, तब नियम 14 (10) के अधीन, जाँच अधिकारी अपना निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।
(4) अभिलेखों का प्रदाय - (i) सुचीबद्ध अभिलेखों का निरीक्षण, प्रारम्भिक सुनवाई समाप्त होने के 5 दिवस के अधीन, जैसा कि जाँच अधिकारी आदेशित करे, आरोप पत्र के साथ सूचीबद्ध अभिलेखों को नियम 14 (11) (एक) के प्रावधानों के अधीन अपचारी अधिकारी अवलोकन कर सकेगा।
(ii) बचाव पक्ष के साक्ष्यों की सूची प्रस्तुत करना- नियम 14 (11) (दो) के प्रावधानों के अधीन अपचारी अधिकारी उस साक्षियों की सूची जाँचकर्त्ता अधिकारी को प्रस्तुत करेगा, जो उसके बचाव के लिए आवश्यक हो।
टिप्पणी-यदि सूचीबद्ध साक्ष्यों का पूर्व में लिए गए बयान हो, जिसकी माँग मौखिक रुप से या लिखित में की गई है, तब जाँच अधिकारी उसे, उस तिथि से कम से कम तीन दिवस पूर्व, जब अभियोजन साक्ष्यों का परीक्षण निर्धारित हो, प्रदाय किया जावेगा।
(iii) अतिरिक्त अभिलेखों का प्रदाय - यदि अपचारी अधिकारी ऐसे अभिलेख, जो कि आरोप पत्र के साथ सूची बद्ध न हो एवं शासन की अभिरक्षा में हो, की माँग करता है तब नियम 14 (11) (तीन) के अधीन उसे प्रदाय किया जा सकता है, बशर्ते वह जाँच के लिए सुसंग अभिलेख है। सुसंगत होने का निर्धारण जाँच अधिकारी द्वारा किया जावेगा एवं सुसंगत अभिलेख सिद्ध करने का भार अपचारी अधिकारी पर होगा।
टिप्पणी- (i) अपचारी अधिकारी को अभिलेखों के अवलोकन तथा उसमें प्रस्तुत कर्ता अधिकारी की भूमिका, अध्याय 14, में स्पष्ट की गई है, अवलोकन करना उचित होगा। (ii) अगर अतिरिक्त अभिलेख शासकीय अभिरक्षा से प्राप्त होने में विलम्ब हो रहा हो, तब जांच अधिकारी, ऐसे तिथि जो तीस दिवस से अधिक न हो, के लिए जाँच की कार्यवाही स्थगित कर सकेगा।
(5) अतिरिक्त अभिलेख संकलन की प्रक्रिया- (i) अतिरिक्त अभिलेख प्रदाय की सूचना प्राप्त होने के साथ ही जाँच अधिकारी नियम 14 (12) के अधीन, सम्बन्धित अधिकारी को, जिसकी अभिरक्षा में ऐसा अभिलेख हो, एक निर्धारित अवधि में उसे उपलब्ध कराने का आग्रह करेगा।
परन्तु यह जाँच अधिकारी के विवेक पर ही निर्भर करेगा कि वह इस प्रकार से माँग किए गए अतिरिक्त अभिलेख के प्रदाय को अमान्य कर देवे परन्तु, ऐसी परिस्थिति में उसे उन कारणों को अभिलिखित करना होगा जिसके आधार पर ऐसे अभिलेखों के प्रदाय को अमान्य किया गया है।
(ii) नियम 14 (13) में जाँच के प्रावधानों के अधीन, वह समस्त अधिकारी, जिनकी अभिरक्षा में अभिलेख होगा, जाँच अधिकारी द्वारा निर्धारित तिथि को अभिलेख जाँच अधिकारी को उपलब्ध कराएगें।
परन्तु ऐसा अधिकारी, जिसकी अभिरक्षा में वह अभिलेख है, अगर यह लिखित में प्रमाणित करे कि ऐसा अभिलेख, जन हित या राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार, पर दिया जाना उचित नहीं होगा, तब वह ऐसी सूचना जाँच अधिकारी को देगा एवं जाँच अधिकारी तदनुसार अपचारी अधिकारी को इसे सूचित करेगा।
5. नियमित सुनवाई स्तर पर की जाने वाली कार्यवाही -
प्रारम्भिक सुनवाई के अधीन अपचारी अधिकारी के व्यक्तिगत परीक्षण एवं अपचारी अधिकारी द्वारा माँग किए समस्त अभिलेखों के अवलोकन/प्रदाय किए जाने के उपरान्त नियमित सुनवाई प्रारम्भ की जावेगी जिसमें निम्नानुसार प्रक्रियाएँ सम्मिलित होगी।
(1) नियमित सुनवाई हेतु तिथि निर्धारण - नियम 14 (11) के प्रावधानों के अधीन अपचारी अधिकारी द्वारा आरोप पदों को अस्वीकार कर दिए जाने के बाद, जाँचकर्त्ता अधिकारी प्रस्तुतकर्ता अधिकारी को अभियोजन साक्ष्यों को परीक्षण के लिए प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित कर सकेगा एवं इस हेतु तिथि एवं स्थान निर्धारित करते हुए समस्त पक्षकारों को उपस्थित रहने हेतु लिखित में सूचना जारी करेगा। इसमें साक्ष्यों को समन करना भी, सम्मिलित होगा।
(2) अभियोजन साक्ष्यों का परीक्षण - प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा, नियम 14 (14) के प्रावधानों के अधीन अभियोजन साक्ष्यों को प्रस्तुत कराकर उनका बयान (Statement), जाँच अधिकारी के सम्मुख, रिकार्ड कराया जावेगा। इस बयान के आधार पर अपचारी अधिकारी द्वारा अभियोजन साक्ष्यों का प्रतिपरीक्षण (Cross Examination) किया जावेगा। अगर प्रस्तुतकर्ता अधिकारी का यह मानना है कि प्रति परीक्षण में प्रकाश में आए प्रश्न/विषय पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है, तब अभियोजन साक्ष्य का वह पुनः परीक्षण (Re-Examination) कर इनका निराकरण कर सकेगा। जब तक सूचीबद्ध अभियोजन साक्ष्यों का परीक्षण पूर्ण नहीं होता, तब तक यह प्रक्रिया आगामी दिनों में भी जारी रहेगी।
(3) अतिरिक्त अभियोजन साक्ष्यों की प्रस्तुति - अनुशासनिक प्राधिकारी की और से कार्यवाही समाप्त किए जाने के पूर्व यदि प्रस्तुतकर्ता अधिकारी को यह आवश्यक प्रतीत होता है कि, कोई ऐसा साक्ष्य जो आरोपों के साथ सूचीबद्ध सूची में सम्मिलित नहीं है, एवं उन्हें भी प्रस्तुत किया जाना है, तब उसके आग्रह पर, नियम 14 (15) के प्रावधानों के अधीन जाँच अधिकारी स्वविवेक से ऐसे साक्ष्य के परीक्षण की अनुमति दे सकेगा।
परन्तु साक्ष्यों की कमी की पूर्ति के लिए न तो नवीन साक्ष्य की अनुमति दी जावेगी एवं न ही प्रस्तुत करने हेतु कहा ही जावेगा। ऐसे साक्ष्य को तब ही प्रस्तुत करने की अनुमति होगी, अगर प्रस्तुत साक्ष्यों में कोई त्रुटि या अन्र्तनिहित कमी होगी।
(4) बचाव उत्तर-जब अभियोजन साक्ष्यों का परीक्षण, प्रतिपरीक्षण एवं पुनः परीक्षण पूर्ण हो जावेगा, एवं अनुशासनिक अधिकारी की ओर से प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा अभियोजन साक्ष्यों के प्रस्तुतिकरण का कार्य समाप्त कर दिया जावेगा तब नियम 14 (16) के प्रावधानों के अधीन जाँच अधिकारी लिखित में या मौखिक रुप से अपना बचाव उत्तर प्रस्तुत करने हेतु अपचारी अधिकारी को निर्देशित करेगा। यदि बचाव उत्तर मौखिक रुप से दिया गया हो तब उसे, जाँच अधिकारी के सम्मुख, लिपिबद्ध (Record) किया जावेगा। इस लिखित बचाव उत्तर पर अपचारी अधिकारी हस्ताक्षर करेगा एवं उसकी एक प्रति प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी को दी जावेगी।
(5) बचाव साक्ष्यों का प्रस्तुतिकरण - प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान अपचारी अधिकारी द्वारा जिन बचाव साक्ष्यों की सूची जाँच अधिकारी को प्रस्तुत की गई थी, उन बचाव साक्ष्यों के परीक्षण की कार्यवाही, नियम 14 (17) सम्पन्न की जावेगी। इस प्रक्रिया में अपचारी अधिकारी या बचाव सहायक, यदि कोई हो तब, उसके द्वारा बचाव साक्ष्यों का बयान लिपिबद्ध (Record) कराया जावेगा। इस लिपिबद्ध बचाव साक्ष्य के बयान पर प्रस्तुत कर्त्ता अधिकारी द्वारा प्रतिपरीक्षण (Cross Examination) किया जावेगा। प्रस्तुत कर्त्ता अधिकारी द्वारा बचाव पक्ष के साक्ष्यों के प्रति परीक्षण के पश्चात, अपचारी अधिकारी अगर चाहे तब बचाव पक्ष के साक्ष्यों का पुनः परीक्षण कर सकता है।
(6) सामान्य परीक्षण (General Examination)- सी.जी.सी.एस.सी.सी.ए. नियम 1966 के नियम 14 (18) के अधीन जाँच अधिकारी द्वारा अपचारी अधिकारी के सामान्य परीक्षण (General Examination) का प्रावधान है। इसके अर्न्तगत, अभियोजन तथा बचाव दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के परीक्षण के उपरान्त, अपचारी अधिकारी से उन नियमों/साक्ष्यों के विषय में सामान्य प्रश्न पूछेंगे, जो विषय, जाँच अधिकारी के मतानुसार, अपचारी अधिकारी के प्रतिकूल हो। अगर उसका मौखिक उत्तर अपचारी अधिकारी द्वारा दिया गया हो, तब उसे जाँच अधिकारी द्वारा लिपिबद्ध किया जावेगा, परन्तु अगर इन विषयों पर लिखित में भी अपना पक्ष अपचारी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, तब जाँच अधिकारी द्वारा उसे मान्य किया जावेगा।
टिप्पणी - सामान्य परीक्षण (General Examination) विभागीय जाँच प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योकि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त (Principle of Natural Justice) के आधार पर अपचारी अधिकारी को बचाव का अन्तिम अवसर प्रदान करता है।
(7) प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी की सुनवाई/ब्रीफ- छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण/नियंत्रण में अपील नियम 1966 के नियम 14 (19) में प्रस्तुतकर्ता अधिकारी के मौखिक सुनवाई का प्रावधान नही है। परन्तु यह प्रावधान है कि प्रस्तुतकर्ता अधिकारी समस्त साक्ष्यों के आधार पर अपना ब्रीफ जाँच अधिकारी को प्रस्तुत करेगा एवं उसके साथ ही जाँच की नियमित कार्यवाही पूर्ण होगी।
6. प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी का ब्रीफ-
विभागीय जाँच में, जाँच की कार्यवाही पूर्ण होने के बाद, प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा मौखिक परीक्षण या फिर लिखित में ब्रीफ प्रस्तुत किया जाना, उसकी ओर से कार्यवाही पूर्ण होना माना जाता है। जाँच के दौरान उभय पक्षों द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर जो तथ्य सामने आते है वह किसी निर्णय की ओर इंगित करते है। अतः प्रस्तुत कर्ता अधिकारी, जाँच में उपस्थित तथ्यों को अपने तार्किक शक्ति से निर्णय की ओर पहुँचने का प्रयास, अपने ब्रीफ में करता है। नियम 14 (19) में प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा ब्रीफ को प्रस्तुत किया जाना एक महत्वपूर्ण कार्यवाही होती है।
7. प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारों के ब्रीफ का प्रारुप -
सामान्यतया, नियमों में प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी का ब्रीफ प्रस्तुत करने का कोई विहित प्ररुप नहीं है, फिर भी निम्न प्ररुप, उस उद्देश्य के लिए, प्रयोग में लाया जा सकता है-
(i) प्रस्तावना।
(ii) अधिरोपित आरोपों का विवरण।
(iii) प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान की गई कार्यवाही।
(iv) नियमित सुनवाई के दौरान की गई कार्यवाही।
(v) अपचारी अधिकारी को दिया गया युक्तियुक्त अवसर (बचाव सहायक की नियुक्ति, स्थगन, प्रति परीक्षण का दिया गया अवसर, बचाव पक्ष के साक्ष्यों का परीक्षण इत्यादि)।
(vi) आरोपों के विषय में साक्ष्यों एवं तथ्यों का परस्पर संबंध।
(vii) अपचारी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का विवरण।
(viii) साक्ष्यों का विश्लेषण।
(ix) निष्कर्ष।
टिप्पणी-प्रस्तुतकर्ता का ब्रीफ उपरोक्त प्ररुप में आरोप पदवार होगा।
8. प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी के ब्रीफ का आधार -
प्रस्तुतकर्ता अधिकारी का ब्रीफ, निम्न अभिलेखों एवं साक्ष्यों पर आधारित होगा-
(i) आरोप पत्र एवं आरोपों पर अभिकथन।
(ii) अपचारी अधिकारी द्वारा विभिन्न अवसरो पर दिए गए बचाव उत्तर।
(iii) उभय पक्षों की ओर से दिए गए मौखिक एवं लिखित साक्ष्य।
(iv) दैनिक कार्यवाही विवरण।
(v) जाँच के मध्य जाँच अधिकारी द्वारा दिए गए अन्तर निहित (Interlocutory) आदेश।
टिप्पणी प्रस्तुतकर्ता अधिकारी का ब्रीफ अभियोजन के साध्यों की शुद्धता एवं शक्ति पर निर्भर होना चाहिए, न कि बचाव पक्ष की कमजोरियों पर। उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायालयीन प्रकरण शरद विरदी चन्द शारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य में इस प्रकार टिप्पणी की है,
"It is well settled that prosecution must stand or fall on its own legs and it can not derive any strength from the weakness of the defence. This is trite law and no decision has taken a contrary view."
9. दैनिक कार्यवाही विवरण तैयार किया जाना -
जाँचकर्ता अधिकारी द्वारा संपन्न जाँच प्रक्रिया के अधीन की गई समस्त कार्यावाहियों का एक दैनिक कार्यवाही विवरण (Order sheet) संधारित किया जावेगा। इस दैनिक कार्यवाही विवरण का विस्तृत उल्लेख इस पुस्तक के अध्याय 13 में दिया गया है जिसका अवलोकन किया जाना उचित होगा।
10. विभागीय जाँच प्रक्रिया के संबंध में महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण
(1) क्या सूचीबद्ध अभिलेखों के अवलोकन के समय जाँच अधिकारी एवं प्रस्तुतकर्ता अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य है ?
इस विषय में केन्द्रीय सतर्कता मैन्यूअल संस्करण 1991 के अध्याय XI के पैरा 3.7 में स्पष्ट किया गया है। अपचारी अधिकारी द्वारा अभिलेखों का अवलोकन, प्रस्तुतकर्ता अधिकारी या अन्य किसी राजपत्रित अधिकारी, जिसे अनुशासनिक अधिकारी द्वारा इस प्रयोजन हेतु प्राधीकृत किया गया हो या ऐसा अधिकारी जिसकी अभिरक्षा में वह अभिलेख है, की उपस्थिति में, जाँच कर्त्ता अधिकारी द्वारा निर्धारित स्थल कर सकेगा। अवलोकन के समय जाँच अधिकारी की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है।
(2) क्या कोई अभिलेख, जिसे अपचारी अधिकारी द्वारा अपने बचाव के लिए माँगा है, दिए जाने से इंकार किया जा सकता है?
हाँ, अपचारी अधिकारी द्वारा बचाव हेतु माँगे गए अभिलेखों को जाँच अधिकारी दो कारण से देने से मना कर सकता है, -
(i) अगर जाँचकर्ता अधिकारी की दृष्टि से माँगा गया अभिलेख सुसंगत नहीं है। परन्तु ऐसा करने के समय उन्हें, उस कारणों का भी उल्लेख करना होगा, जिस आधार पर अमान्य किया गया है।
(ii) अगर वह अधिकारी, जिसकी अभिरक्षा में अभिलेख है, लिखित में यह प्रमाणित करे कि ऐसे अभिलेख को, व्यापक जन हित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से, दिया जाना उचित नहीं है तब जाँच अधिकारी प्रदाय कराने से मान कर सकेगा।
टिप्पणी-केन्द्रीय सर्तकता आयोग (1991) के मैन्युअल के अध्याय XI के पैरा 3.5 उस विषय को स्पष्ट किया गया है, जो इस प्रकार है,
"3.5 कोई ऐसा अभिलेख, जो बचाव की दृष्टि से सुसंगत है, उसके प्रदाय को इनकार किया जाना, संविधान के अनुच्छेद 311(2) का उल्लंघन होगा। अतः किसी अभिलेख तक अपचारी अधिकारी की पहुँच को रोकना नही चाहिए, जब तक यह बचाव के लिए असंगत न हो या फिर इससे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं व्यापक जन हित पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो। जहाँ तक अभिलेख सुसंगत होने का प्रश्न है, इसे शासकीय सेवक की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। अगर अभिलेख के थोड़ा भी संगत होने की संभावना हो तब शासकीय सेवक के आग्रह को निरस्त नहीं किया जाना चाहिए। जन हित या राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर अभिलेखों के पहुँच को तभी मना किया जाना चाहिए जब इसका स्पष्ट आधार हो कि इनके प्रदाय करने से जनहित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होगी। परन्तु ऐसे प्रकरण विरले ही होंगे।"
(3) क्या प्रारंमिक जाँच के समय लिए गए साक्ष्यों के बयान को विभागीय जाँच में मान्य किया जा सकता है ?
हाँ, प्रारम्भिक जाँच के संमय लिपिबद्ध बयान को विभागीय जाँच में मान्य किया जावेगा। इस विषय में, इसे केन्द्रीय सतकर्ता मैन्यूअल (1991) के अध्याय XI के पैरा 6.2 स्पष्ट किया गया है, जो इस प्रकार से अनुवादित है-
"अभियोजन साक्ष्यों के बयान (Statement) नए सिरे से लिए जाने के विपरीत,जहाँ यह संभव हो, प्रारम्भिक जाँच के समय साक्ष्य के लिए गए बयान को, नियमित जाँच के समय, साक्ष्य को पढ़कर सुनाया जावेगा एवं अगर वह इसे स्वीकार करता है तब उसी बयान पर उसका प्रति परीक्षण किया जावेगा। परन्तु, इस बयान की प्रति कम से कम नियमित सुनवाई के तीन दिन पूर्व अपचारी अधिकारी को दी जानी चाहिए।" जहाँ तक सी.बी.आई. के अनुसंधान अधिकारी द्वारा लिए गए बिना हस्ताक्षारित बयान का प्रश्न है, उसे साक्ष्यों को पढ़कर सुनाया जावेगा एवं जाँच अधिकारी के सामने यह अभिप्रमाणित किया जावेगा, कि इसे सम्बन्धित व्यक्ति को पढ़कर सुनाया गया एवं उनके द्वारा यह स्वीकार किया गया। तदुपरान्त प्रतिपरीक्षण की कार्यवाही की जावेगी।
(4) विभागीय जाँच में साक्ष्यों के प्रस्तुतिकरण का क्रम-
(i) सर्वप्रथम प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा अभियोजन साक्ष्यों (राज्य की ओर से साक्ष्य) को प्रस्तुत किया जावेगा। यह पूर्णतया प्रस्तुतकर्ता अधिकारी के ऊपर है कि अभियोजन साक्ष्यों की सूची के किस क्रमानुसार वे अभियोजन साक्ष्यों को प्रस्तुत करते है।
(ii) अभियोजन साक्ष्यों का प्रस्तुतिकरण हो जाने के बाद बचाव पक्ष के साक्ष्यों को अपचारी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत कर उनका परीक्षण कराया जावेगा।
(5) साक्ष्यों के परीक्षण में विभिन्न परीक्षणों का क्रम क्या होगा ?
(i) सर्वप्रथम साक्ष्यों का मुख्य परीक्षण होना होता है. जिसमें उनका बयान सर्वप्रथम साक्ष्य जिसे मुख्य परीक्षण (Examination in Chief) कहते है
(ii) तदुपरांत परीक्षण (Cross Examination) होगा एवं अंत में आवश्यकतानुसार पुनः परीक्षण (Re-examination) होगा।
(6) तीनों प्रकार के परीक्षण कौन कराता है ?
मुख्य परीक्षक (Examination in Chief) - अभियोजन साक्ष्यों का मुख्य मुरख्क्षण प्रस्तुत कर्ता अधिकारी कराता है जबकि बचाव पक्ष का मुख्य परीक्षण अपचारी अधिकारी या बचाव सहायक (Defence Assistant) द्वारा, अगर कोई हो तब, किया जाता है।
(ⅱ) प्रतिपरीक्षण (Cross Examination) - अभियोजन साक्ष्यों का प्रतिपरीक्षण अपचारी अधिकारी या बचाव सहायक द्वारा किया जाता है जब कि बचाव पक्ष के गवाह का प्रतिपरीक्षण प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा किया जाता है।
(iii) पुनः परीक्षण (Re-Examination) अभियोजन साक्ष्यों का पुनः परीक्षण प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा किया जाता है, जबकि बचाव पक्ष के साक्ष्यों का पुनः परीक्षण अपचारी अधिकारी या बचाव सहायक द्वारा किया जाता है।
(7) सूचक प्रश्न क्या होते है? क्या इनके पूछने की अनुमति होती है?
सूचक प्रश्न (Leading Question) वह प्रश्न होता है, जो अप्रत्यक्ष रुप से आशानुरुप उत्तर को स्वयं ही प्रस्तुत कर देता है। मुख्य परीक्षण एवं पुनः परीक्षण में सूचक प्रश्नों को नहीं पूछा जाना चाहिए। परन्तु, प्रतिपरीक्षण के समय सूचक प्रश्न (Leading Question) पूछा जा सकता है।
(8) क्या दुबारा पुनः प्रति परीक्षण की अनुमति दी जा सकती है?
अगर पुनः परीक्षण में कोई तथ्य नया उपस्थित होता है तब जाँच अधिकारी दुबारा प्रतिपरीक्षण की अनुमति दे सकते है।
(9) क्या प्रस्तुतकर्ता अधिकारी से अपचारी अधिकारी पूछताछ कर सकता है? जब प्रस्तुतकर्ता अधिकारी स्वयं साक्ष्य के रुप में उपस्थित होगा तभी प्रश्न पूछ सकता है l
(10) अगर कोई साक्ष्य, अपने प्रारम्भिक जाँच में दिए गए बयान से हटकर विभागीय जाँच के समय अपचारी अधिकारी के पक्ष में बयान देता है तब क्या कार्यवाही की जानी चाहिए?
बिना किसी औचित्य के बयान को अपचारी अधिकारी के हित में बदला जाना, वह साक्ष्य, जो शासकीय सेवक है, द्वारा किया गया कदाचरण माना जावेगा एवं उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही भी की जा सकती है। इस विषय में केन्द्रीय सर्तकता आयोग द्वारा कार्यालयीन आदेश क्रमांक 73/12/2005 दिनांक 15 दिसम्बर 2005 द्वारा निर्देश जारी किया गया है, जो इस प्रकार है,
"सतर्कता मैन्यूअल भाग-1 के रुल 16 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई शासकीय सेवक जिसके द्वारा प्रारम्भिक अनुसंधान में कोई बयान दिया गया है एवं इस प्रकार बयान में परिवर्तन किया जाता हो जिसका या तो कोई औचित्य न हो या फिर वह अन्य पक्ष को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से किया गया हो, तब उसका इस प्रकार का आचरण, आचरण नियमों के नियम 3 के अधीन कदाचरण माना जावेगा एवं अनुशासनहीनता के आरोप में उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही भी की जा सकेगी।"
(11) क्या साक्ष्यों को परीक्षण हेतु दूसरी बार बुलाया जा सकता है?
प्रस्तुतकर्ता अधिकारी, जाँच अधिकारी की अनुमति से अभियोजन साक्ष्य को परीक्षण हेतु दूसरी बार बुला सकता है। परन्तु, दूसरी बार परीक्षण में भी अपचारी अधिकारी को प्रति परीक्षण का अवसर प्रदान करना होगा।
(12) क्या अपचारी अधिकारी की अनुपस्थिति में जाँच चल सकती है?
इस विषय पर सतर्कता मैन्युअल 1999 संस्करण के अनुच्छेद 17.5 में स्पष्टीकरण दिया गया है, जो इस प्रकार है
"अगर किसी विशेष सुनवाई में, अपचारी अधिकारी उपस्थित रहने में असमर्थ रहा है, तब उसका बचाव सहायक जाँच की कार्यवाही जारी रख सकता है बशर्ते कि अपचारी अधिकारी द्वारा उसे, इस विषय में, प्राधिकृत किया गया हो।"
परन्तु अगर, अपचारी अधिकारी द्वारा कोई बचाव सहायक नहीं रखा है, तब जाँच जारी नहीं रह सकेगी।
(13) क्या जाँच अधिकारी साक्ष्यों से प्रश्न पूछ सकता है ?
हाँ, सी.जी.सी.एस.सी.सी.ए. नियमों के नियम 14 (14) में यह प्रावधान है कि जाँच कर्ता अधिकारी का साक्ष्यों से, जैसा उचित समझे, प्रश्न कर सकता है, परन्तु, इसमें निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए,
(i) जाँच अधिकारी द्वारा जिस विषय पर साक्ष्यों का परीक्षण किया है, उस विषय पर दोनों पक्षों को प्रतिपरीक्षण करने का अवसर प्रदान करना होगा।
(ii) प्रश्न ऐसा नहीं होना चाहिए जो आरोप को सिद्ध करने की दृष्टि से किया गया हो।
(14) क्या जाँच अधिकारी, अपचारी अधिकारी से प्रश्न पूछ सकता है ?
जाँच अधिकारी, अपचारी अधिकारों से नियम 14 (18) के अधीन, जैसी भी स्थिति हो, सामान्य परीक्षण के दौरान प्रश्न पूछ सकता है परन्तु उसे भी सूचक प्रश्न (Leading Question) पूछने का अधिकार नहीं है।
टिप्पणी- उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायालयीन प्रकरण मोनी शंकर बनाम भारत संघ एवं अन्य, जे.टी. 2008 (3) एस.सी. 484: (2008) 3 एस.सी.सी. 484: 2008(3)
एस.एल.जे. (एस.सी.) में सम्पूर्ण जाँच प्रक्रिया को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि जाँच अधिकारी द्वारा अपचारी अधिकारी से आज्ञापक (Mandatory) प्रश्न पूछ कर अपनी सीमा को लांघा गया।
नियम 14 (18) के अधीन सामान्य परीक्षण (General Examination) में, जाँच अधिकारी को ऐसा प्रश्न करना चाहिए, जो उसके बचाव के उद्देश्य से पूछा गया हो l
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