भारतीय संसद भारत के संविधान का स्वरूप गणतंत्रीय तथा ढांचा संघीय है और उसमें संसदीय प्रणाली के प्रमुख तत्व विद्यमान हैं । इसमें संघ के लिये एक संसद का प्रावधान है जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन अर्थात् राज्य सभा ( काउंसिल ऑफ स्टेट्स ) और लोक सभा ( हाउस ऑफ दी पीपल ) सम्मिलित हैं ; इसमें संघ की कार्यपालिका का भी प्रावधान है जो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों में से सदस्य लेकर बनती है और वह सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है , इस प्रकार संघ की कार्यपालिका और संसद के बीच घनिष्ठ संबंध सुनिश्चित हो जाता है ; इसमें यह भी प्रावधान है कि एक राज्याध्यक्ष होगा जिसे भारत का राष्ट्रपति कहा जाएगा और वह केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह से काम करेगा ; भारतीय संविधान में अनेक राज्यों का प्रावधान है जिनकी कार्यपालिकाओं और राज्य विधानमंडलों के बारे में वैसे ही मूल उपबन्ध हैं जैसे कि संघ के बारे में हैं ; संविधान में विधि सम्मत शासन की व्यवस्था है तथा इसमें एक स्वतंत्र न्यायपालिका की और एक स्थायी सिविल सेवा की व्यवस्था है । भारत की संसद प्रभुसत्ता सम्पन्न निकाय नहीं है , यह एक लिखित सं
भारत का संविधान संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है। यह एक लिखित दस्तावेज है जो सरकार और उसके संगठनों के मौलिक बुनियादी संहिता, संरचना, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का निर्धारण करने वाले ढांचे को निर्धारित करता है। इसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया था और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसको अंगीकृत किये जाने के समय, संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं और इसमें लगभग 145,000 शब्द थे, जिससे यह अब तक का अंगीकृत किया जाने वाला सबसे लंबा राष्ट्रीय संविधान बन गया। संविधान के प्रत्येक अनुच्छेद पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा बहस की गई, जिनकी संविधान के निर्माण के लिए 2 वर्ष और 11 महीने की अवधि में 11 सत्रों में और 167 दिनों के दौरान बैठक हुई। संविधान की प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है और अपने नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का आश्वासन देती है और बंधुत्व को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। संविधान सरकार के एक संसदीय स्वरूप का प्रावधान करता है जो कुछ एकात्मक